सोमवार, 7 जनवरी 2008

पढि लिखी के कोनो इनार पोखरि खुनैब

आई पता नै अनायास बचपनक एकटा दिन याद आबि गेल। जखन नैनटा के रही त एक दिन छोटका काका पढ़वा के लेल मारलन्हि। मारलन्हि कि दू दालि के फोरी देलन्हि। पांचहु आंगुर गाल पर छपि गेल। मय के देखी के नेप खसि परलई। मुदा ओकरा एतेक हिम्मत नै भेलई जे काका कि किछु कहतै। बेचारी तामसक घूंट पीबी के रही गेल। तामस त बड चढलई तैं किछु भनभना के चुप भ गेल. मैयाँ के मय के भनभनेनाइ पसिन नै परलै. ओहो तमसा क लागलै काका पर बाजए, छोरी नै दहि, तोरा कोन मतलब छौ, नै पढ़तै त, ओनहियो कोन पढि के इनार-पोखरि खुनबा देतै। हमरा चोट त बड लागल रहे, मुदा संगहि ओई दिन इहो चीज बुझायल जे लोक पढि-लिखी के इनार-पोखरि खुनबैत छै। मुदा जखन गियान भेल आ कने दुनिया देखलियई त आब सबटा उलटे भ रहल छै। लोक आब इनार-पोखरि खुनबैत नै छै, बल्कि ओकरा भरबैत छै। अनकर के कहे, हमर अपने पित्ती इनार भरबा देलखीन। गाम मे एकटा आरो बरका इनार रहै, सेहो भरा गेलै। ओतबे नै, पोखरि सेहो मरनासन भ गेल छै। एक त गाम मे आब पोखरि बचलै नै, आ जे छैहियो से बेकार भ गेल छै।
आई वएह गप्प सोची के मन मे बड्ड कचोट भ रहल अई जे पढि-लिखि के हम अपन संस्कार आ संस्कृति के बिसरि रहल छी। मन परैत अई जे कतेक बेर दलान पर बूढ महिला सब आबि के कहैत छली जे बउवा रौ एके हाथे इनार सा पाइन खीची दे, ओ शायद कोनो कबूला मे टोटका होइत छलै। संगहि छैठक पूजा मे इनारे के पाइन स सबटा काज होई। एतेक उपयोगक इनार आई मिथिला स विलुप्त भ रहल अई। एकटा चीज आरो अई, बखारी। बखारी धनीक लोकक निसानी होइत छल। ओना जं सच पूछी त आब अपन मिथिला मे केयो धनीक नै रहि गेल. ओना आब खेती तं नै रहलै जे लोक बखारी राखत, तइयो एखनो जे किछु जमींदार बचि गेल छैथ से आब लोहा के कोठी रखैत छैत। बखारी आ मैटक कोठी जे कि मिथिलान्चलक बपौती कहाइत छल से आई निपत्ता भ रहल अई। मोन परैत अई बखारी के ओ दिन जखन धान ढारबा काल मे छोटकी मौनी ओई मे खसि परै त घर मे सबस दूबर-पातर होइबा के कारने हमरे ओकरा निकालबा लेल घुसायल जैत छल।
अहिना एकटा चीज आरो अहि जे कि अपन मिथिला सं विलुप्त भ रहल अई आ ओ छी डबरा। आब बहुत कम डबरा बची गेल अई। पहिने लोक कहै जे डीह डाबर छै कि ने, मतलब डीह के संगे डबरा सहो भेनाई जरुरी छलै मुदा आब त किछु सालक बाद लोक डबरा बुझबो ने करतै। इ बात सही छै कि हम सब आब शुशिक्षित भ गेलौं मुदा इ बात बहुत चिंतनीय अहि जे हमरा सब अपन विरासत के खतम का रहल छी। एखनो किछु ने भेल हं, समय अई जे जागि जाउ आ अपन पहचान के बनने राखु।

1 टिप्पणी:

Ashutosh Kumar Jha ने कहा…

Such a great effort by u Mr. Roshan Jha jee ...badd nik lalal....
Ashutosh Kr. Jha