शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

साग पात खोंटि-खोंटि दिवस गमौबै

साग पात खोंटि-खोंटि दिवस गमौबै यो मिथिले मे रहबै
नै चाही हमरा सुख आराम यो मिथिले मे रहबै
एहन बात नै छै जे ई गीत आहां सब नै सुनने छी वा हम पहिलुक बेर आहां सबकेँ सुना रहल छी। दरअसल ई गीत हम नैनटा मे खूब गाबैत रही। ई गीत गाबि स्कूल मे हम एक बेर इनामो जीत चुकल छी मुदा ई बिसरा गेल छल। रैब दिन (25 जनवरी) के हंसराज कालेज मे अखिल भारतीय मिथिला नवनिर्माण मंचक उद्घाटन मे गेल रही। समारोह मे मिथिलांचलक बहुत पैघ-पैघ हस्ती सभ अएल रहथि। एहि मे बिहारक पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ जगन्नाथ मिश्रक संगे पूर्व सांसद गौरी शंकर राजहंस, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार सतीश चंद्र झा, सांसद संजय पासवान, पूर्व सांसद आ मंत्री रामकृपाल सिंह, दिल्ली के स्थानीय विधायक महाबल मिश्र, इतिहासकार डीएन झा, मैथिली भोजपुरी अकादमी के उपाध्यक्ष अनिल मिश्र आ साहित्यकार मृदुला सिंहा जी अएल रहथि। ई गीत मृदुला जी अपन वक्तव्यक बीच मे गौने रहथिन। गीत सुनि अचानक भक दए यादि आबि गेल आ हम किछु मलीन भए गेलहुं। मलिन एहि चलते कि अपना-आप पर बड दुख भेल जे जै गीत के हम खूब भास लगा-लगा धिया-पुता मे गाबैत रही तकरा हम बिसरा गेलहूं। दुख एहि गीते टा के लए कए नै भेल बल्कि आए अपन मिथिला संस्कारक कतेको चीज अछि जकरा हम बिसरि गेलहूं। सच पूछू त’ हमही टा नै बल्कि अपना-आप के मिथिलांचलक मठाधीश कहाबए बला कतेको लोकनि छथि जे अपन संस्कार के बिसरि चुकल छथि। एकर पाछू एकमात्र कारण गाम-घर सँ विमुख भेनाइ आ शहरीकरण अछि। कोनो बात नै ई बहुत पैघ चर्चा के विषय छी आ एकरा पर बहस ब्लागक माध्यमसँ केनाई हम उचित नहीं बुझि रहल छी। खैर चलू। हम अखिल भारतीय मिथिला नवनिर्माण मंच के बारे मे बात करैत रही। दिल्ली मे आजुक दिन मे सए टा सँ अधिक मैथिली के संस्था काज कए रहल अछि। हम कतेको संस्थाक कार्यक्रम में शिरकत कएलहुं। सभ संस्था कार्यक्रमक रूप मे विद्यापति समारोह या फेर सरस्वती पूजा, काली पूजा नै त छैठक पूजे तक अपना-आप के सीमित रखने छथि। इ हमरा पहिल संस्था भेटल जकर उद्देश्य दिल्ली मे रहि रहल बिहारी आ मैथिल के विकास छैक। दिल्लीए टा नहि बल्कि बिहार मे मिथिलांचलक विकास के लेल इ संस्था सेहो प्रयत्नशील अछि। जेना की संस्था के पहिनुके दिन विषय रहै मिथिलाक समग्र विकास: चुनौती आ सम्भावना। ओनहियो एहि संस्थासँ काफी सुशिक्षित लोक सभ जुड़ल छथि। एकर अध्यक्ष रंजीत मिश्र जी छथि जे हंसराज कालेज के संस्कृत विभाग मे वरीष्ठ प्राध्यापक छथि। बड बेस, एहि संस्था सँ किछु उम्मीद जागल अछि आ आशा करैत छी जे जाहि उत्साहक संग संस्थाक शुरुआत भेल अछि ओ हमेशा बनल रहत। हमर इएह शुभकामना अछि।

हास विद्या: चोर आ सोना के खेती

मिथिलामे काँची नामक एकटा राजधानी छल। ओतए कहियो सुप्रतापी नामक एकटा राजा भेल छेलाह। एक बेर कोनो धनिकक ओतए चोरी करैत चारि गोट चोर सेंध करैत ओसारा पर पकड़ि लेल गेल। चारो चोर के कोतवाल बांधि के राजा के सामने प्रस्तुत कएलक आ सभटा बात बतौलक। राजा अपन जल्लाद सभकेँ निर्देश देलनि जे चारो चोरकेँ नगर सँ बाहर ल’ जो आ शूली पर चढ़ा के मारि दे। राजा दंडनीति के हवाला दैत कहला जे विद्वानक कहब छैन जे सज्जन के सम्मान आ दुष्ट के नाश ही राजधर्म होइत छैक। राजा के आज्ञा पाबि जल्लाद एक-एक कए तीन टा जल्लाद के शूली पर चढ़ा देलक। आब चारिम के बारी छलै। चारिम चोर सोचलक जे आब मरब त’ निश्तुके अछि त’ किएक नै एक बेर जीवन बचाबए के अंतिम उपाय कएल जए। किएक त’ अगर ओ एहि मे असफल रहल तैयो मरनाइ त’ निश्चिते छैक। जखन जल्लाद ओकरा शूली पर चढ़ाबए लागल त ओ बपहारि तोरि कहए लागल - हे जल्लाद हमरा मरए सँ पहिने एकटा बात कहक अछि। हम एकटा बड पैघ विद्या जानैत छी आ चाहैत छी जी मरए सँ पहिने ई विद्या राजा के बता दियैक। अगर हम राजा के बिना बतौने मरैत छी त फेर ई विद्या सेहो मरि जायत। जल्लाद पुछलक - तों मरए सँ पहिने कोना बहाना त नै कए रहल छें? तों एहन कोन विद्या जानैत छें जाहि मे राजा के रूचि सेहो हेतन्हि। राजा के एकटा चोर की सिखा सखैत अछि। चोर बाजल - सुनु कोतवाल, अगर अहां हमर ई समाद राजा तक नै पहुंचायब त’ अहाँ राजद्रोही के भागी बनब किएक त’ अहाँ राजाकेर हित के बात मे दखल द’ रहल छी। जखन राजा के हमर विद्या के बारे मे पता चलतन्हि त ओ खुश भए अहूं के इनाम देताह। जल्लाद सभके विश्वास भ’ गेलै जे सचमुच राजहित के कोनो बात हेतै। ओकरा मे सँ एकटा चोरक इच्छा राजा के बताबए विदा भए गेल। राजा सुनि सेहो जिज्ञासु भ’ उठलाह। राजा चारिम चोर के दरबार मे बजाए पुछलाह जे तों एहन कोना विद्या जानैत छें जो दोसर किओ नै जनैत छैक आ एहि सँ हमर हित हैत। चोर राजा सँ पुछलक - महाराज, अहाँ के सोना केर खेती अबैत अछि। राजा चैंकैत पुछलाह - सोना के खेती? ई कोना होइत छैक। चोर बाजल - महाराज, सोना के सरसों जकां आकार के बीया बना यदि खेत में छीटल जाए त एक महीना बादे सरसों जकां सोना के पैदावार होइत छैक। अहां सद्यह देखब। राजा के चोर पर बिसबास नै भेलैन्ह आ पुछलाह - तों सच बजैत छें। चोर पूरा विश्वासक संग बाजल - महाराज हम फूसि बाजब त’ कतए जाएब। अगर हम फूसि बजैत हैब त’ एक माह बाद हमरो अंत निश्चिते अछि। आखिर दंड देबाक वा इनाम देबाक अंतिम अधिकार त’ अहिंक लग अछि। राजा के अनुमति पाबि चोर सोना के बीया बनौलक आ क्रीड़ा-सरोवर के कछैर पर एकांत मे खेत सेहो तैयार कए लेलक। फेर राजा सँ कहलक जे महाराज आब बीया आ खेत दूनू तैयार अछि खाली बीया बाग करए वाला एकटा आदमी चाही। राजा चोर सँ पुछलाह - बीया तों अपने सँ किएक नै छीटैत छें जे तोरा एकरा लेल आदमी चाहियौ। चोर बाजल - महाराज अगर हम सोना के बीया छीट सकैत छलहुं तो फेर चोरी किएक करितहुँ? चोर के सोना के बीया छीटक अधिकार नै छैक। एहि बीया के वएह आदमी छीटी सकैत अछि जे जीवन मे कहियो चोरी नै केने होमए। हम त’ चाहैत छी महाराज अपने सँ एहि पवित्र काज के करथि। राजा चिंता मे पड़ि बजलाह - हम भाट-चारण के देबाक लेल पिताजी के धन चुरा चुकल छी तें हम ई काज नै कए सकैत छी। कोनो बात नैं मंत्री लोकनि मे सँ केओ एहि काज के करताह। राजा के एहि गप्प सुनि मंत्री सब बाजि उठलाह - महाराज हम सब ठहरलहुं राजकर्मचारी, बिना इम्हर-ओम्हर केने हमर सभक काज कोना चलि सकैत अछि तें हमहूं सब एकरा योग्य नहिं छी। एहि पर चोर धर्माध्यक्ष के दिसि देखैत बाजल - कोना बात नै, राजा के धर्माधिकारीये एकरा छिटी देथीन्ह। एहि पर धर्माध्यक्ष बजलाह - जखन हम नैन टा रही त’ मय सँ चोरा-चोरा के लड्डू खा लैत रही तें हमहूं एकर लायक नै छी। राजा के सभा मे चोरक शर्तक मुताबिक एकोटा आदमी बीया छीटबा लेल तैयार नै भेलाह। एहि पर चोर राजा के सामने हाथ जोड़ि ठाढ़ भए गेल आ बाजल - महाराज जखन अहां सभ केओ चोरी केने छी त’ फेर हम एसकरे किएक मारल जाई। चोरक बात सुनि सबटा सभासद हँसए लगलाह। राजा सेहो तमसए के बदला हँसए लगलाह। राजा चोर के माफ कए देलाह आ मनोरंजन करबाक लेल अपने दरबार मे नौकरी पर राखि लेलाह। तें कहल गेल अछि े चोर सँ अधम किओ नै होइत अछि तैयो हास विद्या सँ ओ मृत्युक मुँहसँ निकलि राजा के सबसँ स्नेही बनबा मे सफल रहल।
साभार: विद्यापति कृत पुरुष परीक्षा, लेखक: अखिलेश झा, प्रकाशक: प्रकाशन विभाग, भारत सरकार

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

लोककथा: चतुर वानर

बहुत दिन पहिनेक बात थिक। एकटा महामूढ़ छल। ओ बड़दक हाट पर गेल आ अपन खेत जोतबाक हेतु एक जोड़ बड़द किनलक। घर घुरैत काल रस्तेमे साँझ पड़ि गेलै। ओकर गाम तखनो बहुत दूरे छलै। ओकरा एकटा पैघ जंगल पार करबाक छलै। जंगलमे बनैआ जानवर सभक वास छलै। तेँ ओ जाहि गाम द’ क’ जा रहल छल ताही गाममे राति बितयबाक निश्चय कयलक। सड़कक कातमे एकटा कोल्हु देखि ओ कोल्हुमे अपन जोड़ो बड़दकेँ बान्हि देलक आ से क’ क’ राति बिता लेलक। दोसर दिन भोरमे जखन ओ बड़दक जोड़केँ खोलए लागल तखनहि कोल्हुक मालिक ओकरा ललकि लेलकै - ‘तोँ के छेँ? हमर बड़द किएक ल’ जा रहल छेँ?’ ओ मूर्ख जवाब देलकै - ‘बड़द हमर थिक। हम हाटमे एकरा किनने छलहुँ आ राति भ’ जयबाक कारणेँ एत’ बिलमि गेल छलहुँ।’ मुदा तेली जोर दैत कहलकै - ‘नहि, नहि, बड़दक जोड़ हमर थिक। राति भरिमे कोल्हु ई दूनू बिआयल अछि। तोँ देखैत नहि छेँ जे ई दूनू एहीमे बान्हल अछि?’ मुरखाहा ततेक अकबका गेल जे ओकरा कोनो उत्तर दैत नहि बनलै। ओ जोड़ो बड़दकेँ छोड़ि कनैत-कनैत चलि देलक। जखन ओ थोड़ेक दूर गेल तँ ओकरा एकटा वानरसँ भेट भेलै। वानर ततेक चतुर छल जे ओकरा पंडित कहल जाइ छलै। ओ आदमी वानर लग गेल आ अपन रामकहानी कहि सुनौलकै। वानर कहलकै जे ओ पंचैती क’ देतै। तकर बाद ओ ओकरा कहलकै जे तोँ गाम जो आ किछु गौआँ सभकेँ एकट्ठा क’ क’ हमर बाट तकिहेँ।मुरखाहा घुरि गेल आ लगपासक किछु गौआँ सभकेँ जमा क’ क’ बाट ताक’ लागल। वानर कहने छलै जे ओ दुपहरेमे जूमि जयतै। गौआँ सभ तावत् धरि प्रतीक्षा करैत रहल यावत् सूर्य माथ पर आबि उतरि नहि गेला। बेरियामे वानर अत्यंत जरूरी काजमे बाझल रहबाक भम्हारा दैत आबि गेल। मूर्ख आदमी ओकरासँ पूछि बैसलै - ‘अहाँ एते देरीसँ किएक पहुँचलहुँ। लोक सभकेँ बहुत बेसी काल धरि प्रतीक्षा करा देलियै।’ पंडित वानर जवाब देलकै - ‘हम आबि रहल छलहुँ। तखने देखलहुँ जे एकटा पोखरिमे आगि लागि गेल छै। माछ सभ पाकि रहल अछि। यावत् आगि मिझायल नहि तावत् धरि हम रूकल रहलहुँ। वाह रे वाह! माछ सभ खूब पैघ-पैध आ सुअदगर छल।’ तेली सहित सभटा गौआँ बिहुँसि पड़ल आ बजैत गेल - ‘वाहरे खिस्सा! पोखरिमे कतहु आगि लगलै अछि?’ वानर पंडित जवाब देलक - ‘ई खिस्सा तेहने अछि जेना कोल्हुक द्वारा जोड़ा बड़दक बिआन करब।’ सभ केओ चुप्पी लाधि लेलक। वानर पंडित मूर्ख आदमीकेँ अपन बड़दक जोड़ी ल’ जयबाक आदेश देलकै। ओ तहिना कयलक। आब केओ रोकनिहार नहि छलै।

एडवांस कने कम बनू

हम अपना ब्लाग के माध्यमसँ एक बेर अहाँ सबके मैथिली मे गारि देबा सँ चेता चुकल छी। एक बेर फेर दिल्ली-पंजाब कमय बलाकेँ किछु भाषाई दिक्कतसँ सचेत करए चाहैत छी। दरअसल बहरबैया सभकेँ अपना-आपके किछु विशेष एडवांस करबाके चक्कर में आई-काल्हि ई फैशन भए गेल छनि कि घर में धिया-पुताक संग अंग्रेजीक शब्द विशेष इस्तेमाल करए लगलाह अछि। एहि सँ संबंधित एकटा सत गप्प बताबए चाहैत छी। कोजागरा के राति छलै। भार में खूब रास केरा आएल छलै। एकटा नेना के केरा लेबाक इच्छा भेलै। ओ नानी के कहलकै जे ‘बनाना’ लेब। नानी अंग्रेजी नै बूझि पौलखिन तेँ बच्चा के बात के अनसुना कए देलखिन। बच्चा फेरो दोहरेलकै जे बनाना लेब। नानी फेर नै देलखिन त बच्चा बपहारि तोड़ए लागल। नानी कोरा मे उठा के पुचकारि के पूछए लागलखिन जे गै बाबू की लेब कहू ने। बच्चा कहलक बनाना। नानी कहलखिन कहू न कथी ‘बना देब’। बच्चा कहलक बनाना। नानी फेर पुछलखिन कथी बना देब से त बाजू। बच्चा बनाना-बनाना के रट लगबैत अंगना के दलोमलित कए देलक। एतबे मे बच्चा के कानब सुनि मय हकासल-पियासल दौड़ल अएलीह। जखन पता चललैन्ह जे बच्चा केरा लेल कनैत अछि त मए पर बरसि पड़लीह। मए के कहली जे तोरा बुते एकटा केरा नै भेलौ देल। मए कहए लगलखीन इ त किदैन बना देबए कहैत छलौ। दुने माय-धी के बहस होमए लागल आ माहौल गरमय गेल। तैं सचेत करैत छी जे बच्चा के कने-मने अपनो भाषा के ज्ञान दियौ नै तँ अपने पर बिसैत। अंग्रेजी बुझनाइ कोना खराब नै मुदा ओ हिंदी सेहो बुझए। सिक्सटी नाइन बुझए त’ उन्नहत्तर सेहो बुझे एकर खयाल जरूर राखी।

मंगलवार, 27 जनवरी 2009

चंठिनी भाउजि

बहुत दिन पहिनेक बात छै। एक दोसरकेँ खूब सिनेह कर’ वला छ टा भाइ आ एकटा बहिन छलि। सभटा भाइक बिआह भ’ गल छलै। बहिनिक प्रति भाइ सभक अतिशय दुलारसँ जरैत रह’ वाली भाउज सभ अपन ननदिक मान-दान नहि करै छलि। एक बेर एहन भेलै जे सभ भाय उद्यम करबा लेल दूर देश चल गेल। ओकरा सभक परोच्छ फबि गेने भौजाइ सभ अपन ननदिक संग अधलाह व्यवहार कर’ लागलि। ओ सभ ओकरा विभिन्न प्रकारक भरिगर काजमे लगौने रहै छलि। तैओ ओ कन्या जान पर खेलि ओ सभटा काज करैत रहै छली जे ओकरा कहल जाइ छलै। तखन भौजाइ सभ ओकर जाने हति देबाक रचना रचि लेलक। ओ सभ ओकरा एकटा माटिक बासन देलकै आ इनार पर जा क’ ओकरा भरि क’ अनबाक लेल कहलकै। बासनक पेनीमे बड़कीटा भूर छलै। तेँ जखने ओहिमे पानि भरै आ कि लगले चूबि जाइ। कन्या इनार पर बासन ल’ क’ गेलि मुदा ओकरा भरब असंभव बूझि कान’ लागलि। एकाएक एकटा पैघ बेंग पानि पर सँ अपन मूड़ी बहार कयलक आ ओकरासँ पुछलक - ‘अहाँ किअए कनै छी?’ ओ बाजलि - ‘हमर अंतिम घड़ी आबि गेल अछि। जँ हम ई बासन नहि भरि सकब तँ मारलि जायब। मुदा एहि बासनक पेनीमे भूर छै।’ बेंग बाजल - ‘निफिकिर रहू। हम भूरमे बैसि जायब आ ओकरा अपन देहसँ झाँपि देबै। अहाँ बासन भरि सकब।’ बेंग सैह कयलक आ ओ कन्या पानि ल’ क’ घर चलि गेलि।

भौजाइ सभ बड़ तमसायलि छलै मुदा किछु कहि नहि सकलै। तखन ओ सभ किछु दोसरे उपाय सोचलक। ओ सभ ओकरा जंगल जा क’ जारनक पैघ बोझ आन’ कहलकै। मुदा बोझकेँ बन्हबाक लेल ओ कोनो रस्सी नहि ल’ सकै छल। कन्या बहुत रास पांग जमा क’ लेलक। तकर बाद ओ बैसि क’ कान’ लागलि। एकटा पैघ साप बाहर भेल आ पुछलकै - ‘अहाँ किअय कनै छी?’ कन्या सभ बात कहि देलकै। साप बाजल - ‘हम ठहुरी सभक चारूकात रस्सी जकाँ लेपटा जायब आ समस्याक समाधान भ’ जयतै।’ ओ सैह कयलक आ कन्या अपना माथ पर ध’ क’ ठहुरी सभकेँ उघि लेबामे समर्थ भ’ गेलि। भौजाइ सभ चिन्तामे पड़ि गेली जे आब की करी? दोसर दिन ओ सभ अपन ननदिके एकटा एहन खेतमे पठा देलक जाहिमे एक दिन पहिने दालि छीटल गेल छलै। ओ सभ ओकरा साँझ धरि सभटा दालि बीछि क’ लाब’ कहलकै। कन्या खेत पर गेलि आ बुझि गेलि जे काज असंभव अछि किएक तँ बीया सभ सौंसे छिड़िआयल छलै। हताश भ’ क’ ओ कान’ लागलि। तखने एक झुंड पड़बा आबि क’ ओकरासँ पुछलकै जे बात की छै। जखन ओ अपन कनबाक कारण बुझा देलकै तखन पड़बा सभ एहि बात पर सहमत भ’ गेल जे ओ सभ सभटा अन्न बीछि देतै। शीघ्रे ओ सभ तहिना कयलक आ सभटा अन्न कन्याक छिट्टामे ध’ देलक। साँझमे ओ कन्या भरि छिट्टा अन्न लेने घुरि गेलि।

भौजाइ सभ पहिनेसँ बेसीए खौंझा गेलि आ पहिनहुसँ बेसी कष्टदायक उपाय सोचि लेलक। ओ सभ ओकरा एकटा पैघ बासन द’ देलकै आ जंगलमे जा क’ भरि बासन रीछनीक दूध आन’ कहलकै। कन्या जंगल गेलि आ बैसि रहलि। ओकरा किछु ने फुराइ जे की करी। एकटा रीछनी अयलै ओ ओकरासँ पुछलकै जे ओ जंगलमे एसगर आ उदास किएक बैसलि अछि। कन्या अपन रामकहानी सुना देलकै। रीछनी ओहि कन्याकेँ गछि लेलकै जे ओ ओकरा दूहि क’ भरि बासन दूध घर ल’ जाय। तखन भौजाइ सभ ओहि कन्याकेँ जंगल ल’ गेलि आ अपना सभक संगे एकटा सीढ़ी सेहो लेने गेलि। ओ सभ एकटा तीस हाथ ऊँच गाछ तकलक। ओहिमे तन्नुक डाढ़ि सभ छलै। सीढ़ी लगा क’ ओ सभ कन्याकेँ गाछ पर चढ़ि फड़ तोड़ए कहलकै। कन्या चढ़ि गेल आ फड़ तोड़ए लागलि। चंठिनी भौजाइ सभ चट द’ सीढ़ी घीचि लेलक आ घर घुरि गेलि। ओ सभ कन्याकेँ गाछ पर सँ कूदि कए मरि जयबाक हेतु छोड़ि देलकै।

कन्याकेँ अदंक पैसि गेलै। ओ गाछे पर बैसलि रहलि। रातिमे ओकर भाय सभ घुरलै आ सुस्तयबाक लेल ओही गाछ तर बैसि गेलै। कन्या कानि रहलि छलि। ओकर गर्म नोर कोनो भाइक देह पर खसि पड़लै। ओ सभ ऊपर दिस तकलक आ कन्याकेँ देखिते ओकरा चीन्हि गेल। ओ सभ बहिनकेँ खतरासँ बचा लेलक आ घर ल’ गेल। ओ सभ ततेक खिसिया गेल छल जे अपन घरवाली सभकेँ तेज कुलहाड़िसँ कुट्टी-कुट्टी काटि मारि देलक। तकर बादसँ ओ सभ अपन बहिनिक संग आनंदसँ रह’ लागल।

सोमवार, 26 जनवरी 2009

मैथिल ब्राह्मण संस्कार

ब्राह्मण हमेशा सँ संस्कारक लेल विख्यात रहल अछि। ओना ई बात अलग अहि जे आई ब्राह्मण अपन संस्कार केँ बिसरि रहल छथि। जाति-प्रथा में ब्राह्मण कें सबसँ श्रेष्ठ मानल गेल अहि जाहि चलते हुनकर कर्तव्य होईत छनि जे ओ अपन ज्ञान आ शास्त्रसम्मत कर्म सँ समाजक मार्ग दर्शन करैत रहथि। ब्राह्मणक किछु प्रमुख संस्कारक बारे मे एतए बतएबाक प्रयास क’ रहल छी...
छठिहार:
ब्राह्मणक संस्कारक पहिल शुरुआत छठिहार दिन सँ होईत अछि। छठिहार बच्चा के जन्मक छठम दिन मनाओल जाइत अछि। एहि दिन सांझक समय सति भगवती के सामने अरिपण द विशेष पूजा-पाठ कएल जाईत अछि। एहि अवसर पर मां आ बच्चा के पीयर कपड़ा विशेष तौर पर पहिराओल जाइत अछि आ ओकर बढ़िया संस्कारक कामना कएल जाइत अछि। एहि प्रथा मे महिले टा हिस्सा लैत छथि। छठिहार में प्रयुक्त होबए वला सामग्री: कागत, लाल रोसनाई, पुरहर पाटिल, बियैन, दीप, कजरौटा, शाही कांट, चक्कु, छूरा आ लावा।
नामकरण: जन्मक एगारहम वा बारहम दिन बच्चा केर नामकरण कएल जाइत अछि। एहि अवसर पर पंच देवता, विष्णु, नवग्रह आ पार्थिव शिवलिंग के पूजा विधि विधानक संग कएल जाइत अछि। एकर बाद बच्चा के राशि के हिसाब सँ कोनो उपयुक्त नाम देल जाईत अछि। बच्चा आ मां नबका कपड़ा पहिर भगवानक पूजा-अर्चना करैत छथि। एकर बाद दुरबा पातक डांट के मौध में डुबा बच्चाक ठोर पर नाम लिखल जाईत अछि। नब वस्त्र अक्सरहां बच्चा के मात्रिक सं अबैत अछि। ओना ई कोनो जरूरी नै। अन्नपराशन: अगर बेटा हो त छह सं आठ महिना के बीच आ बेटी हो तो सात सं नौ महिना के बीच कोनो शुभ मुहुर्त मे बच्चा के नबका कपड़ा पहिरा घरक कोनो बुजुर्ग महिला इ विधि करैत छथि। एहि विधिक तहत बच्चा के पहिलुक बेर अन्न खुआओल जाइत अछि। एहि अन्न के तहत मुख्य रूप सँ बच्चा के पायस आ मिठाई खुऔबाक प्रथा अछि। कतेक ठाम इ विधि बच्चा के मामाक द्वारा कयल जाईत अछि। कहल जाईत अछि जे मामा चांदी के बाटी मे बच्चा के पायस खुआबैत छथि। ओना मामाक सामथ्र्य गुने बाटी कोनो आरो चीज के भए सकैत अछि। एहि बारे मे एकटा धारणा ईहो अछि जे अगर इ विधि नै कएल जाइत छैक त बच्चा तोतराय लागैत अछि।
मुड़न: मुड़न अक्सरहां एक सं पांच सालक बीच मे कोनो शुभ मुहुर्त पर कएल जाइत अछि। एहि अवसर पर बच्चा के केस हजाम द्वारा कैंची सँ काटल जाइत अछि जकरा घरक कोनो बुजुर्ग महिला बच्चाक पाछू बैसि अपना आंचर में रखैत छथि। केस कटला के बाद बच्चा के नाहाओल जाइत अछि आ फेर नबका पकड़ा पहिरा दुर्बाछत देल जाइत अछि। एकर बाद बच्चा पहिने भगवती के प्रणाम करैत अछि आ तकर बाद सब केँ पैर छूबि आशीर्वाद लैत अछि। एहि अवसर पर सांझ में भोज-भात आ मिठाई सेहो बांटल जाईत अछि। कतेक ठाम मुड़न पर बलि प्रथाक सेहो प्रचलन अछि जकरा प्रायः जगमुड़न कहल जाईत अछि। सांझ मे केस के बंसबिट्टी या फेर कोनो पवित्र नदी में भंसाओल जाइत अछि। मुड़नक अवसर पर कतेक ठाम बच्चा के कान सेहो छेदल जाईत अछि। बच्चा के कान सोनाक कुंडल सं छेदल जाइत अछि। ओना ई कोनो जरूरी नै कि कुंडल सोने के होमए। हालांकि ई प्रथा कतेक ठाम उपनयन में सेहो कयल जाईत अछि।

अक्षारंभ: प्रायः तीन सँ पांच सालक बीच में कहियो बच्चाक शिक्षारंभ कएल जाईत अछि। हालांकि ई बिधि कतेक ठाम मुड़नेक दिन क’ लेल जाईत अछि। बच्चा के हाथ में चैक पकड़ौबाक शुरुआत आचार्य भोरका उखराहा मे करैत छथि। एहि अवसर पर पंच देवता, कुल देवता, लक्ष्मी-गणेश, सरस्वती, विष्णु, महादेव और ब्रह्मा केेर पूजा कएल जाईत अछि। एकटा साबूत केराक पात पर अरिपण द’ पांच किलो अरबा चाउर ओहि पर पसारल जाईत अछि। एकर बाद आचार्य बच्चा के अपना कोरा मे ल’ बच्चा के दहिना हाथ मे चैक पकड़ा ओहि चावल पर ओम नमः शिवाय लिखबावैत छथि। एकर बाद एहि चावल के पीयर कपड़ा सँ झांपि देल जाईत अछि। चाउर के सांझ में उठा लेल जाईत अछि। ओना बहुत केयो ई बिधि सरस्वती पूजा के दिन क’ लैत छथि। सरस्वती के विद्या के देवी मानल गेल अहि आ लोक एहि दिन के एहि कार्यक लेल विशेष शुभ मानैत छथि।
उपनयन: कहल जाईत अछि जे उपयनक बादे ब्राह्मणत्वक संस्कार लोक मे अबैत अछि। एहि दिन सँ बच्चा के ब्रह्मक ज्ञान होईत अछि आ ओ अपन संस्कारक प्रति सजग होईत अछि। उपनयनक लेल ओना त’ उम्रक कोनो सीमा नहि अछि मुदा कहल जाईत अछि जे जँ पांच सालक भीतर भ’ जए तं ई विशेष उत्तम। उपनयनक विधि विवाहो सँ कहिं भाड़ी होईत अछि। उपनयनक विधि के शुरुआत उद्योग सँ होईत अछि। एकर बाद मैट मंगल, मरब ठट्ठी, चरखकट्टी, कुमरम, मात्रिका पूजा, अभ्युदयक श्रद्धा, चूड़ाकर्ण, उपनयन, वेदारंभ, समाबर्तन आ उपनयनक चारिम दिन रातिम होईत अछि। रातिम दिन सत्यनारायण भगवानक पूजा क’ उपनयनक विधि-विधानक समाप्ति कएल जाईत अछि। उपनयनो मे कतेक ठाम बलि प्रदानक प्रथा अछि।
विवाह: कहल जाईत अछि जे विवाहक बादे मानव जन्म के पूर्ण मानल जाईत अछि वरना जन्म अधूरा अछि। मैथिल विवाहक विधि अछि - सिद्धांत, कुमरम, लाबा भुजाई, आज्ञा डाला, मात्रिका पूजा वा अभ्युदयक श्रद्धा, आम-मौह विवाह, पैर धोआई, परिछन, धोबिनयां सँ सोहाग, नैना-जोगिन, कन्यादान, बिवाह, सिंदुरदान, चतुर्थी आ फेर दुईरांगमन। ओना कतेक ठाम मैथिल विवाह मे कुमरमक प्रथा नहीं अछि। एतबे नहि कतेक ठाम मात्रिका पूजा बरियातिक एलाक बाद होईत अछि तँ कतेक ठाम पहिने भ’ जाईत अछि।
मरण: संस्कारक अंतिम चरम थिक मरण। ताहि चलते एकरा अंतिम संस्कार सेहो कहल जाईत अछि।

शनिवार, 24 जनवरी 2009

सपना

एकटा दम्पति छल। ओ दूनू खेतमे कठिन परिश्रम क’ क’ भोजनक जोगाड़ क’ लै छल। एकरा दूनूकेँ एकटा नीक घर बनयबाक अतिरिक्त कोनो इच्छा नहि छलै। एकरा दूनूकेँ घरक अभाव छलै।एक दिन दुपहरिया रातिमे पत्नी जागि गेलि आ अपन घरवलाकेँ कहलक जे ओ एकटा विचित्र सपना देखलक अछि। घरवला पुछलकै - ‘बाजू सपना की छल?’ पत्नी बाजलि - ‘हम सपनामे देखलहुँ जे हम महावनमे बूलि रहल छी आ एकटा पुरान ढहल-ढनमनायल मंदिर लग पहुँचि गेल छी। हम बड़ थाकल छी आ मंदिरक सिंहद्वार पर राखल एकटा पाथर पर बैसि जाइ छी। जखने हम बैसै छी आ कि पाथर कनेक डोलि उठै अछि। हमरा बुझाइ अछि जे हम किछु चमचम करैत देखलहुँ अछि। हम पाथरकेँ हटा दै छी आ देखै छी जे चानीक रुपैयासँ भरल एकटा घैल अछि। हे यो स्वामी! हमरालोकनि ओत’ चली आ देखी जे सपना सच ने तँ अछि।’ घरवला मानि गेल। तखने किछु लुटिहारा ओकरा सभक घर लग द’ क’ जा रहल छल। चमकैत वस्तुक कथ सुनि ओ सभ गप्पकेँ नीक जकाँ अकानबाक हेतु ठमकि गेल। ओ सभ सभटा बात सूनि लेलक आ महावन दिस दीगि गेल। ओत’ मंदिरक सिंहद्वार पर ओ सभ पाथर देखलक। मुदा जखने पाथर हटाओल गेल आ कि एकटा साप एकाएक प्रकट भ’ गेल आ लुटिहारा सभ पर फुफकारलक। लुटिहारा सभक पड़यलाक बाद साप फेर माटमे कुंडली मारि लेलक। लुटिहारा सभ बदला लेब’ चाहैत छल। ओ सभ जल्दीसँ माटक मुँह पर एकटा पाथर राखि ओकरा बन्न क’ देलक। तकर बाद ओ सभ माट ओहि खोपड़ी धरि ल’ गेल आ दम्पतीकेँ दंडित करबाक हेतु माटकेँ पहिनेसँ कयल एकटा भू द’ क’ कोठलीमे फेकि देलक। माट फेकलाक बाद लुटिहारा सभ पड़ा गेल। माट खसल आ फूटि गेल। ओहिमे सँ मारते रास चमकैत अशर्फी टनटनाइत बरायल। पत्नी ओहि बासनकेँ चीन्हि गेली। ओ वैह छल जकरा ओ देखने छली। दूनू गोटे अशर्फी सभकेँ समेटि लेलक आ अपना लय नीक महल बनबौलक। एहि तरहेँ लोभी आ धूत्र्तकेँ दण्ड भेटलै आ नीक लोक पुरस्कृत भेल।

शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

दूटा ठक

आब ओ दिन नहि रहल जे दादा-दादी वा नाना-नानी धिया-पुता के किस्सा-पिहानी सुनेतन्हि। कारण पते हैत। जखन नेना-भुटका बाबा-मैया लग रहतिन्ह तखन नें। खैर जे भी हो हम अपन ब्लागग माध्यमसँ अहां सबके ओ किस्सा-पिहानी सुनेबाक प्रयास क रहल छी
बहुत दिन पहिनेक बात छै। एकटा गाममे दूटा ठक रहै छल। ओकरा दूनूमे संगतुरिया छलै। बहुत दिनसँ दूनू गाक चारूभरक लोककेँ ठक्ेत रहय। मुदा आब दस कोसक धरि लोक ओकरा दूनू पर विश्वास नै करैत छल। इ देख ओकर सभक धंधा चैपट भ गेल। दूनू कोना आर ठामक यात्रा करबाक निश्चय कयलक। अचचिन्हार देशमे नव मुल्ला फँसयबाक जोगाड़ भ सकै छलै। चलैत-चलैत दूनू बहुत दूर चलि गेल। भोरे होइत दूनू एकटा दोसर राजाक जा पहुंचल। ओतए पता लगलै जे ओहि राजक राजा पिछला राति मरि गेल। राजाक बेटाकेँ ठकबाक अवसर फरेलै। दूनू राजाक अंतिम संस्कार धरि रुकि गेल। श्राद्धकर्म समाप्त भेलाक बाद ओ दूनू राजाक सारा लग एकटा खाधि खूनि लेलक। एकटा ठक खाधिमे नुका रहल। दोसर ठक राजाक बेटा लग गेल आ जिगेसा करैत बाजल - ‘राजा हमरासँ एक सय टाका पैंच लेने छला। हम ओएह पाइ आपस लेबए आयल छी।’ राजाक बेटा सभ ई सूनि जबाब देलकै - ‘नै हम सभ ओहि कर्जक मादे किछु जनै छी आ ने सधयबे करब।’ ठक अपना बात पर जोड़ दैत कहलक - ‘हमर बात सत्त अछि। राजाक आत्मा सेहो एहि कर्जक सच्चाइ बात सकै छनि। हम सभ हुनक सारा लग चली आ हुनका आत्माकेँ बजा कए पूछि ली।’ राजाक बेटा सभ मानि गेल। सब केओ सारा लग आयल। पहिल ठक आवाज देलक - ‘दोहाइ महाराजकेँ! जँ अपने हमरासँ एक सए टाका पैंच लेने होइ तँ अपन बेटा सभकेँ से कह दिअनु।’ खाधि तरसँ आवाज आयल - ‘हँ! हम पैंच लेने रही। हमर बेटा सभ ओकरा सधा देताह।’ ठकक कपटचालि सफल भेलै। राजाक बेटा सभ मानि गेलाह। राजमहल पहुंचला पर ठककेँ पाइ भेटि गेलै। पाइ भेटिते ओकरा मोनमे पाप आबि बैसलै। ओ अपन मीतक हिस्सो टपा देबाक विचार कयलक आ मीतकेँ खाधिसँ बिनु निकालनहिँ गाम छोड़ि देलक। दोसर ठक खाधिमे बहुत काल धरि रहल। बादमे बाहर अयबाक कोनहुना जोगाड़ कयलक। बाहर आबि ओ राजमहल लग गेल। ओतए अपन मीत द पुछारि कयलक। ओकर भजार जाहि बाटे गेल रहै, से बाट राजाक बेटा ओकरा देखा देलखिन। दोसर ठक एक जोड़ नव पनही कीनि लेलक। खुरपैरिया द क ओ अपन भजारसँ आगू बढ़ गेल आ पनहीक एकटा पबाइ सड़क पर खसा क नुका रहल। ओकर भजार ओहि स्थान पर अयलै। ओकरा पनहीक पबाइ देखि पड़लै। एकेटा पबाइ रहबाक कारणेँ ओ ओकरा उठौलक नहि आ आगू बढ़ैत गेल। तावत् दोसर ठक आर आगू बढ़ि गेल छल। ओ पनहीक दोसरा पबाइ रस्ता पर खसा देलकै आ पहिने जकाँ नुका रहल। बइमानी क क ओकर हिस्सा पचा लेबए वला मीत रस्ता पर दोसरो प बाइ देखलक। ओकर मोन लपलपा गेलै। ओ सोचलक - ‘पहिली पबाइ जा क ल अबै छी। एक जोड़ नव पनही भए जायत।’ से सोचि अपन मोटरी झो ँझमे नुका देलक आ पाछू घूरि गेल। जखने ओ थोड़ेक दूर गेल कि ओकर मीत मोटरी ल क यैह ले वैह ले पार भ गेलै।