गुरुवार, 29 जनवरी 2009

लोककथा: चतुर वानर

बहुत दिन पहिनेक बात थिक। एकटा महामूढ़ छल। ओ बड़दक हाट पर गेल आ अपन खेत जोतबाक हेतु एक जोड़ बड़द किनलक। घर घुरैत काल रस्तेमे साँझ पड़ि गेलै। ओकर गाम तखनो बहुत दूरे छलै। ओकरा एकटा पैघ जंगल पार करबाक छलै। जंगलमे बनैआ जानवर सभक वास छलै। तेँ ओ जाहि गाम द’ क’ जा रहल छल ताही गाममे राति बितयबाक निश्चय कयलक। सड़कक कातमे एकटा कोल्हु देखि ओ कोल्हुमे अपन जोड़ो बड़दकेँ बान्हि देलक आ से क’ क’ राति बिता लेलक। दोसर दिन भोरमे जखन ओ बड़दक जोड़केँ खोलए लागल तखनहि कोल्हुक मालिक ओकरा ललकि लेलकै - ‘तोँ के छेँ? हमर बड़द किएक ल’ जा रहल छेँ?’ ओ मूर्ख जवाब देलकै - ‘बड़द हमर थिक। हम हाटमे एकरा किनने छलहुँ आ राति भ’ जयबाक कारणेँ एत’ बिलमि गेल छलहुँ।’ मुदा तेली जोर दैत कहलकै - ‘नहि, नहि, बड़दक जोड़ हमर थिक। राति भरिमे कोल्हु ई दूनू बिआयल अछि। तोँ देखैत नहि छेँ जे ई दूनू एहीमे बान्हल अछि?’ मुरखाहा ततेक अकबका गेल जे ओकरा कोनो उत्तर दैत नहि बनलै। ओ जोड़ो बड़दकेँ छोड़ि कनैत-कनैत चलि देलक। जखन ओ थोड़ेक दूर गेल तँ ओकरा एकटा वानरसँ भेट भेलै। वानर ततेक चतुर छल जे ओकरा पंडित कहल जाइ छलै। ओ आदमी वानर लग गेल आ अपन रामकहानी कहि सुनौलकै। वानर कहलकै जे ओ पंचैती क’ देतै। तकर बाद ओ ओकरा कहलकै जे तोँ गाम जो आ किछु गौआँ सभकेँ एकट्ठा क’ क’ हमर बाट तकिहेँ।मुरखाहा घुरि गेल आ लगपासक किछु गौआँ सभकेँ जमा क’ क’ बाट ताक’ लागल। वानर कहने छलै जे ओ दुपहरेमे जूमि जयतै। गौआँ सभ तावत् धरि प्रतीक्षा करैत रहल यावत् सूर्य माथ पर आबि उतरि नहि गेला। बेरियामे वानर अत्यंत जरूरी काजमे बाझल रहबाक भम्हारा दैत आबि गेल। मूर्ख आदमी ओकरासँ पूछि बैसलै - ‘अहाँ एते देरीसँ किएक पहुँचलहुँ। लोक सभकेँ बहुत बेसी काल धरि प्रतीक्षा करा देलियै।’ पंडित वानर जवाब देलकै - ‘हम आबि रहल छलहुँ। तखने देखलहुँ जे एकटा पोखरिमे आगि लागि गेल छै। माछ सभ पाकि रहल अछि। यावत् आगि मिझायल नहि तावत् धरि हम रूकल रहलहुँ। वाह रे वाह! माछ सभ खूब पैघ-पैध आ सुअदगर छल।’ तेली सहित सभटा गौआँ बिहुँसि पड़ल आ बजैत गेल - ‘वाहरे खिस्सा! पोखरिमे कतहु आगि लगलै अछि?’ वानर पंडित जवाब देलक - ‘ई खिस्सा तेहने अछि जेना कोल्हुक द्वारा जोड़ा बड़दक बिआन करब।’ सभ केओ चुप्पी लाधि लेलक। वानर पंडित मूर्ख आदमीकेँ अपन बड़दक जोड़ी ल’ जयबाक आदेश देलकै। ओ तहिना कयलक। आब केओ रोकनिहार नहि छलै।

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