शनिवार, 24 जनवरी 2009

सपना

एकटा दम्पति छल। ओ दूनू खेतमे कठिन परिश्रम क’ क’ भोजनक जोगाड़ क’ लै छल। एकरा दूनूकेँ एकटा नीक घर बनयबाक अतिरिक्त कोनो इच्छा नहि छलै। एकरा दूनूकेँ घरक अभाव छलै।एक दिन दुपहरिया रातिमे पत्नी जागि गेलि आ अपन घरवलाकेँ कहलक जे ओ एकटा विचित्र सपना देखलक अछि। घरवला पुछलकै - ‘बाजू सपना की छल?’ पत्नी बाजलि - ‘हम सपनामे देखलहुँ जे हम महावनमे बूलि रहल छी आ एकटा पुरान ढहल-ढनमनायल मंदिर लग पहुँचि गेल छी। हम बड़ थाकल छी आ मंदिरक सिंहद्वार पर राखल एकटा पाथर पर बैसि जाइ छी। जखने हम बैसै छी आ कि पाथर कनेक डोलि उठै अछि। हमरा बुझाइ अछि जे हम किछु चमचम करैत देखलहुँ अछि। हम पाथरकेँ हटा दै छी आ देखै छी जे चानीक रुपैयासँ भरल एकटा घैल अछि। हे यो स्वामी! हमरालोकनि ओत’ चली आ देखी जे सपना सच ने तँ अछि।’ घरवला मानि गेल। तखने किछु लुटिहारा ओकरा सभक घर लग द’ क’ जा रहल छल। चमकैत वस्तुक कथ सुनि ओ सभ गप्पकेँ नीक जकाँ अकानबाक हेतु ठमकि गेल। ओ सभ सभटा बात सूनि लेलक आ महावन दिस दीगि गेल। ओत’ मंदिरक सिंहद्वार पर ओ सभ पाथर देखलक। मुदा जखने पाथर हटाओल गेल आ कि एकटा साप एकाएक प्रकट भ’ गेल आ लुटिहारा सभ पर फुफकारलक। लुटिहारा सभक पड़यलाक बाद साप फेर माटमे कुंडली मारि लेलक। लुटिहारा सभ बदला लेब’ चाहैत छल। ओ सभ जल्दीसँ माटक मुँह पर एकटा पाथर राखि ओकरा बन्न क’ देलक। तकर बाद ओ सभ माट ओहि खोपड़ी धरि ल’ गेल आ दम्पतीकेँ दंडित करबाक हेतु माटकेँ पहिनेसँ कयल एकटा भू द’ क’ कोठलीमे फेकि देलक। माट फेकलाक बाद लुटिहारा सभ पड़ा गेल। माट खसल आ फूटि गेल। ओहिमे सँ मारते रास चमकैत अशर्फी टनटनाइत बरायल। पत्नी ओहि बासनकेँ चीन्हि गेली। ओ वैह छल जकरा ओ देखने छली। दूनू गोटे अशर्फी सभकेँ समेटि लेलक आ अपना लय नीक महल बनबौलक। एहि तरहेँ लोभी आ धूत्र्तकेँ दण्ड भेटलै आ नीक लोक पुरस्कृत भेल।

शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

दूटा ठक

आब ओ दिन नहि रहल जे दादा-दादी वा नाना-नानी धिया-पुता के किस्सा-पिहानी सुनेतन्हि। कारण पते हैत। जखन नेना-भुटका बाबा-मैया लग रहतिन्ह तखन नें। खैर जे भी हो हम अपन ब्लागग माध्यमसँ अहां सबके ओ किस्सा-पिहानी सुनेबाक प्रयास क रहल छी
बहुत दिन पहिनेक बात छै। एकटा गाममे दूटा ठक रहै छल। ओकरा दूनूमे संगतुरिया छलै। बहुत दिनसँ दूनू गाक चारूभरक लोककेँ ठक्ेत रहय। मुदा आब दस कोसक धरि लोक ओकरा दूनू पर विश्वास नै करैत छल। इ देख ओकर सभक धंधा चैपट भ गेल। दूनू कोना आर ठामक यात्रा करबाक निश्चय कयलक। अचचिन्हार देशमे नव मुल्ला फँसयबाक जोगाड़ भ सकै छलै। चलैत-चलैत दूनू बहुत दूर चलि गेल। भोरे होइत दूनू एकटा दोसर राजाक जा पहुंचल। ओतए पता लगलै जे ओहि राजक राजा पिछला राति मरि गेल। राजाक बेटाकेँ ठकबाक अवसर फरेलै। दूनू राजाक अंतिम संस्कार धरि रुकि गेल। श्राद्धकर्म समाप्त भेलाक बाद ओ दूनू राजाक सारा लग एकटा खाधि खूनि लेलक। एकटा ठक खाधिमे नुका रहल। दोसर ठक राजाक बेटा लग गेल आ जिगेसा करैत बाजल - ‘राजा हमरासँ एक सय टाका पैंच लेने छला। हम ओएह पाइ आपस लेबए आयल छी।’ राजाक बेटा सभ ई सूनि जबाब देलकै - ‘नै हम सभ ओहि कर्जक मादे किछु जनै छी आ ने सधयबे करब।’ ठक अपना बात पर जोड़ दैत कहलक - ‘हमर बात सत्त अछि। राजाक आत्मा सेहो एहि कर्जक सच्चाइ बात सकै छनि। हम सभ हुनक सारा लग चली आ हुनका आत्माकेँ बजा कए पूछि ली।’ राजाक बेटा सभ मानि गेल। सब केओ सारा लग आयल। पहिल ठक आवाज देलक - ‘दोहाइ महाराजकेँ! जँ अपने हमरासँ एक सए टाका पैंच लेने होइ तँ अपन बेटा सभकेँ से कह दिअनु।’ खाधि तरसँ आवाज आयल - ‘हँ! हम पैंच लेने रही। हमर बेटा सभ ओकरा सधा देताह।’ ठकक कपटचालि सफल भेलै। राजाक बेटा सभ मानि गेलाह। राजमहल पहुंचला पर ठककेँ पाइ भेटि गेलै। पाइ भेटिते ओकरा मोनमे पाप आबि बैसलै। ओ अपन मीतक हिस्सो टपा देबाक विचार कयलक आ मीतकेँ खाधिसँ बिनु निकालनहिँ गाम छोड़ि देलक। दोसर ठक खाधिमे बहुत काल धरि रहल। बादमे बाहर अयबाक कोनहुना जोगाड़ कयलक। बाहर आबि ओ राजमहल लग गेल। ओतए अपन मीत द पुछारि कयलक। ओकर भजार जाहि बाटे गेल रहै, से बाट राजाक बेटा ओकरा देखा देलखिन। दोसर ठक एक जोड़ नव पनही कीनि लेलक। खुरपैरिया द क ओ अपन भजारसँ आगू बढ़ गेल आ पनहीक एकटा पबाइ सड़क पर खसा क नुका रहल। ओकर भजार ओहि स्थान पर अयलै। ओकरा पनहीक पबाइ देखि पड़लै। एकेटा पबाइ रहबाक कारणेँ ओ ओकरा उठौलक नहि आ आगू बढ़ैत गेल। तावत् दोसर ठक आर आगू बढ़ि गेल छल। ओ पनहीक दोसरा पबाइ रस्ता पर खसा देलकै आ पहिने जकाँ नुका रहल। बइमानी क क ओकर हिस्सा पचा लेबए वला मीत रस्ता पर दोसरो प बाइ देखलक। ओकर मोन लपलपा गेलै। ओ सोचलक - ‘पहिली पबाइ जा क ल अबै छी। एक जोड़ नव पनही भए जायत।’ से सोचि अपन मोटरी झो ँझमे नुका देलक आ पाछू घूरि गेल। जखने ओ थोड़ेक दूर गेल कि ओकर मीत मोटरी ल क यैह ले वैह ले पार भ गेलै।

सोमवार, 14 जुलाई 2008

आब यह सब ने हेत

पिछला शुक्रवार के गप छी। दरभंगा लग एकटा गाम में विवाह छल। बड दिब, विवाहक सबटा तैयारी पूरा क लेल गेल। बरियाती आबी गेल। मुदा विवाह भेल केकरो आरो स। दरआसल जै लरका स विवाह होइतई ओ तते नै दारू पी लेने रहथिन जे विवाहक मंडप पर सबटा सुधि-बुधि बिसरी गेलखिन। विवाह करबा स सेहो मना क देलखिन। कतबो लोक मनबैत रहि गेलैन, नै मनल्खिन। अंत में बरक बाप स कनियागत दहेजक पैसा घुरब कहलखिन त ओहो ओई स इंकार क देलखिन। मामला के गरमैत देखि गामक लोक सब मुखिया आ सरपंच साहेब के बजोलन्हि। बाद मे येह फ़ैसला कायल गेल जे लरका के छोटका भाई स विवाह करा देल जय आ सेह भेबो कायल। छोटका भाई स विवाह भ गेला के बाद बरको के भक खुजलैन त ओ विवाहक लेल इक्च्छा जतोलन्हि आ जबरदस्ती कर लगलाह । फेर की छल, खिसिएल ग्रामीन सब हुनका मारी के सकचुन्ना उरा देलक। कहक गप ई जे अपन मिथिला जे कहियो संस्कार केर लेल जानल जैत छल तकर हाल आई ई भ गेल अई । आख़िर एकरा लेल जिम्मेदार के। एहन कोनो एके बेर नै भेल अई, अई स पहिनहियो कए बेर भ चुकल अई। जन अपन संस्कार आ पहचान कए जिंदा चाहैत छी त एखनो समय अई, जागू।

मंगलवार, 8 जनवरी 2008

हे आब नै दियौ मैथिली मी गारी

दिल्ली-पंजाब कमय बला सब कान खोली के सुनी लिअ। बस-ट्रेन आ हाट-बाज़ार मे आब नै दियौ ककरो मैथिली मे गारी। जाओं इ बुझहैत हेबई जे ओ नै बुझतै त इ भ्रम छी। आब बड लोक मैथिली बुझहैत छै। एकटा आँखिक देखल घटना बतबैत छी। हम दिल्ली युनिवर्सिटी, नॉर्थ कैम्पस मे रहैत छी। अहि ठाम एकटा अपने दीसक छोंरा पानक दोकान करैत दिन अहिना सांझ मे हमरा सब चारि-पांच टा संगी ओकरा दोकान पर ठाढ रही। एकटा छौरी जैत रहै, ओकरा ओ मैथिली मे कही देलकै ये भौजी, आबू न, पान खा न लिअ। औ बाबू, ओ मैथिली बुझहैत रहै। कत ने कत सा तुरंते १००टा छौरी ओकरा दोकान पर आबी धमकलै। कहलकै, भैया पान खिलाना। किछु छौरी पान खेलकै, किछु सिगरेट पिलकै, आ जे सब पान-सिगरेट ने लेलकई से किछु आरे चीज खा के चली देलकै। छौरा बहुत हिम्मत का के कहल्कै अरे मैडम पैसा तो देती जाओ। छौरी पलटि के कहै छै, किया यौ बउवा, भौजियो स पाई लेबई कि। की कहू छौरा के मूह त देखिते बनैत छलै। तें कहि दै छी चेत जाओ, ने त फेर पछतेब। ने चेतु, हमरा कि, हमर फर्ज छल बतेब, से हम बता देलौं, भुगत त अपने परत।

सोमवार, 7 जनवरी 2008

पढि लिखी के कोनो इनार पोखरि खुनैब

आई पता नै अनायास बचपनक एकटा दिन याद आबि गेल। जखन नैनटा के रही त एक दिन छोटका काका पढ़वा के लेल मारलन्हि। मारलन्हि कि दू दालि के फोरी देलन्हि। पांचहु आंगुर गाल पर छपि गेल। मय के देखी के नेप खसि परलई। मुदा ओकरा एतेक हिम्मत नै भेलई जे काका कि किछु कहतै। बेचारी तामसक घूंट पीबी के रही गेल। तामस त बड चढलई तैं किछु भनभना के चुप भ गेल. मैयाँ के मय के भनभनेनाइ पसिन नै परलै. ओहो तमसा क लागलै काका पर बाजए, छोरी नै दहि, तोरा कोन मतलब छौ, नै पढ़तै त, ओनहियो कोन पढि के इनार-पोखरि खुनबा देतै। हमरा चोट त बड लागल रहे, मुदा संगहि ओई दिन इहो चीज बुझायल जे लोक पढि-लिखी के इनार-पोखरि खुनबैत छै। मुदा जखन गियान भेल आ कने दुनिया देखलियई त आब सबटा उलटे भ रहल छै। लोक आब इनार-पोखरि खुनबैत नै छै, बल्कि ओकरा भरबैत छै। अनकर के कहे, हमर अपने पित्ती इनार भरबा देलखीन। गाम मे एकटा आरो बरका इनार रहै, सेहो भरा गेलै। ओतबे नै, पोखरि सेहो मरनासन भ गेल छै। एक त गाम मे आब पोखरि बचलै नै, आ जे छैहियो से बेकार भ गेल छै।
आई वएह गप्प सोची के मन मे बड्ड कचोट भ रहल अई जे पढि-लिखि के हम अपन संस्कार आ संस्कृति के बिसरि रहल छी। मन परैत अई जे कतेक बेर दलान पर बूढ महिला सब आबि के कहैत छली जे बउवा रौ एके हाथे इनार सा पाइन खीची दे, ओ शायद कोनो कबूला मे टोटका होइत छलै। संगहि छैठक पूजा मे इनारे के पाइन स सबटा काज होई। एतेक उपयोगक इनार आई मिथिला स विलुप्त भ रहल अई। एकटा चीज आरो अई, बखारी। बखारी धनीक लोकक निसानी होइत छल। ओना जं सच पूछी त आब अपन मिथिला मे केयो धनीक नै रहि गेल. ओना आब खेती तं नै रहलै जे लोक बखारी राखत, तइयो एखनो जे किछु जमींदार बचि गेल छैथ से आब लोहा के कोठी रखैत छैत। बखारी आ मैटक कोठी जे कि मिथिलान्चलक बपौती कहाइत छल से आई निपत्ता भ रहल अई। मोन परैत अई बखारी के ओ दिन जखन धान ढारबा काल मे छोटकी मौनी ओई मे खसि परै त घर मे सबस दूबर-पातर होइबा के कारने हमरे ओकरा निकालबा लेल घुसायल जैत छल।
अहिना एकटा चीज आरो अहि जे कि अपन मिथिला सं विलुप्त भ रहल अई आ ओ छी डबरा। आब बहुत कम डबरा बची गेल अई। पहिने लोक कहै जे डीह डाबर छै कि ने, मतलब डीह के संगे डबरा सहो भेनाई जरुरी छलै मुदा आब त किछु सालक बाद लोक डबरा बुझबो ने करतै। इ बात सही छै कि हम सब आब शुशिक्षित भ गेलौं मुदा इ बात बहुत चिंतनीय अहि जे हमरा सब अपन विरासत के खतम का रहल छी। एखनो किछु ने भेल हं, समय अई जे जागि जाउ आ अपन पहचान के बनने राखु।

मर्दक मोछ निपत्ता

एखन की भेलै, दिन-दिन देखबै
होमय टा दियौ ई मतदान
पुरुष रहब सुटकल कोठली मे,
महिला बैसत बीच दलान।
श्रीमतीक साड़ी मे साबुन,
सर्फ दियौ सब पति महाराज
कती राति कें एती ब्लौक सं,
ता करियौ भनसा घर-काज
कै दिन पर कहिया घुरी औति,
तकर न रखियौ नाम ठेकान
पुरुष रहब सुटकल कोठली मे,
महिला बैसत बीच दलान॥
बरियाती मे महिले महिला,
मर्द अक बुढ़वा पुरहीत
हुनका प्रेस्टिज पर मे पड़तनि,
गबियौ अहीं वियाहक गीत
नोत हकार पुरै लए गाँ-गाँ
आब अहाँ नै हैब हरान
पुरुष रहब सुटकल कोठली मे,
महिला बैसत बीच दलान॥
सब मिटिंग मे चिक्कन-चिक्कन
चिकेन बोतल सं सम्मान
मंत्री सं कनफुसकी करती,
हटले रहब अहाँ श्रीमान
बैसल अहाँ झुलबियौ झूला,
जे आबए आमद संतान
पुरुष रहब सुटकल कोठली मे,
महिला बैसत बीच दलान॥
नव सरकार बड्ड उपकारी,
भरि बिहार मे तेहन बिहाड़ि
सब गिरहथनी बाघिन बनतै,
गिरहथ भुच्चर तितल बिलाड़ि
फिरी फंड मे मोटर साइकिल,
उड़िते रहती भेल उतान
पुरुष रहब सुटकल कोठली मे,
महिला बैसत बीच दलान॥
बाट-घाट जत्त जे देखियौ
हाथ जोड़ि मैडम परनाम
कनियो जे विरोध मे बजबै,
लगा देती असली इल्जाम
परसेंटेज मे झोटम झोंटा,
हेइए घिचलौं तीन निशान
पुरुष रहब सुटकल कोठली मे
महिला बैसत बीच दलान॥
पुरुष पात्र एसगर ने निकलब,
जनानीक भऽ जैब शिकार
ककरा कहबै? कियो ने सूनत,
वएह दरोगनी थानेदार
करत बेनगन धोती लऽ कें,
छिप्पी पर जहिना भगवान
पुरुष रहब सुटकल कोठली मे,
महिला बैसत बीच दलान॥
आब बेटा मे मूँह लटकतै,
बेटी जनमैत पिपही ढोल
प्रांत सुंदरी, देश सुंदरी,
विश्व सुंदरी नाँ अनघोल
मर्दक पगड़ी मोंछ निपत्ता,
तीर बलाक अचूक निशान
पुरुष रहब सुटकल कोठली मे,
महिला बैसत बीच दलान॥

लेखक - जय प्रकाश चौधरी जनक
साभार - हालचाल पत्रिका

शनिवार, 5 जनवरी 2008