मंगलवार, 27 जनवरी 2009

चंठिनी भाउजि

बहुत दिन पहिनेक बात छै। एक दोसरकेँ खूब सिनेह कर’ वला छ टा भाइ आ एकटा बहिन छलि। सभटा भाइक बिआह भ’ गल छलै। बहिनिक प्रति भाइ सभक अतिशय दुलारसँ जरैत रह’ वाली भाउज सभ अपन ननदिक मान-दान नहि करै छलि। एक बेर एहन भेलै जे सभ भाय उद्यम करबा लेल दूर देश चल गेल। ओकरा सभक परोच्छ फबि गेने भौजाइ सभ अपन ननदिक संग अधलाह व्यवहार कर’ लागलि। ओ सभ ओकरा विभिन्न प्रकारक भरिगर काजमे लगौने रहै छलि। तैओ ओ कन्या जान पर खेलि ओ सभटा काज करैत रहै छली जे ओकरा कहल जाइ छलै। तखन भौजाइ सभ ओकर जाने हति देबाक रचना रचि लेलक। ओ सभ ओकरा एकटा माटिक बासन देलकै आ इनार पर जा क’ ओकरा भरि क’ अनबाक लेल कहलकै। बासनक पेनीमे बड़कीटा भूर छलै। तेँ जखने ओहिमे पानि भरै आ कि लगले चूबि जाइ। कन्या इनार पर बासन ल’ क’ गेलि मुदा ओकरा भरब असंभव बूझि कान’ लागलि। एकाएक एकटा पैघ बेंग पानि पर सँ अपन मूड़ी बहार कयलक आ ओकरासँ पुछलक - ‘अहाँ किअए कनै छी?’ ओ बाजलि - ‘हमर अंतिम घड़ी आबि गेल अछि। जँ हम ई बासन नहि भरि सकब तँ मारलि जायब। मुदा एहि बासनक पेनीमे भूर छै।’ बेंग बाजल - ‘निफिकिर रहू। हम भूरमे बैसि जायब आ ओकरा अपन देहसँ झाँपि देबै। अहाँ बासन भरि सकब।’ बेंग सैह कयलक आ ओ कन्या पानि ल’ क’ घर चलि गेलि।

भौजाइ सभ बड़ तमसायलि छलै मुदा किछु कहि नहि सकलै। तखन ओ सभ किछु दोसरे उपाय सोचलक। ओ सभ ओकरा जंगल जा क’ जारनक पैघ बोझ आन’ कहलकै। मुदा बोझकेँ बन्हबाक लेल ओ कोनो रस्सी नहि ल’ सकै छल। कन्या बहुत रास पांग जमा क’ लेलक। तकर बाद ओ बैसि क’ कान’ लागलि। एकटा पैघ साप बाहर भेल आ पुछलकै - ‘अहाँ किअय कनै छी?’ कन्या सभ बात कहि देलकै। साप बाजल - ‘हम ठहुरी सभक चारूकात रस्सी जकाँ लेपटा जायब आ समस्याक समाधान भ’ जयतै।’ ओ सैह कयलक आ कन्या अपना माथ पर ध’ क’ ठहुरी सभकेँ उघि लेबामे समर्थ भ’ गेलि। भौजाइ सभ चिन्तामे पड़ि गेली जे आब की करी? दोसर दिन ओ सभ अपन ननदिके एकटा एहन खेतमे पठा देलक जाहिमे एक दिन पहिने दालि छीटल गेल छलै। ओ सभ ओकरा साँझ धरि सभटा दालि बीछि क’ लाब’ कहलकै। कन्या खेत पर गेलि आ बुझि गेलि जे काज असंभव अछि किएक तँ बीया सभ सौंसे छिड़िआयल छलै। हताश भ’ क’ ओ कान’ लागलि। तखने एक झुंड पड़बा आबि क’ ओकरासँ पुछलकै जे बात की छै। जखन ओ अपन कनबाक कारण बुझा देलकै तखन पड़बा सभ एहि बात पर सहमत भ’ गेल जे ओ सभ सभटा अन्न बीछि देतै। शीघ्रे ओ सभ तहिना कयलक आ सभटा अन्न कन्याक छिट्टामे ध’ देलक। साँझमे ओ कन्या भरि छिट्टा अन्न लेने घुरि गेलि।

भौजाइ सभ पहिनेसँ बेसीए खौंझा गेलि आ पहिनहुसँ बेसी कष्टदायक उपाय सोचि लेलक। ओ सभ ओकरा एकटा पैघ बासन द’ देलकै आ जंगलमे जा क’ भरि बासन रीछनीक दूध आन’ कहलकै। कन्या जंगल गेलि आ बैसि रहलि। ओकरा किछु ने फुराइ जे की करी। एकटा रीछनी अयलै ओ ओकरासँ पुछलकै जे ओ जंगलमे एसगर आ उदास किएक बैसलि अछि। कन्या अपन रामकहानी सुना देलकै। रीछनी ओहि कन्याकेँ गछि लेलकै जे ओ ओकरा दूहि क’ भरि बासन दूध घर ल’ जाय। तखन भौजाइ सभ ओहि कन्याकेँ जंगल ल’ गेलि आ अपना सभक संगे एकटा सीढ़ी सेहो लेने गेलि। ओ सभ एकटा तीस हाथ ऊँच गाछ तकलक। ओहिमे तन्नुक डाढ़ि सभ छलै। सीढ़ी लगा क’ ओ सभ कन्याकेँ गाछ पर चढ़ि फड़ तोड़ए कहलकै। कन्या चढ़ि गेल आ फड़ तोड़ए लागलि। चंठिनी भौजाइ सभ चट द’ सीढ़ी घीचि लेलक आ घर घुरि गेलि। ओ सभ कन्याकेँ गाछ पर सँ कूदि कए मरि जयबाक हेतु छोड़ि देलकै।

कन्याकेँ अदंक पैसि गेलै। ओ गाछे पर बैसलि रहलि। रातिमे ओकर भाय सभ घुरलै आ सुस्तयबाक लेल ओही गाछ तर बैसि गेलै। कन्या कानि रहलि छलि। ओकर गर्म नोर कोनो भाइक देह पर खसि पड़लै। ओ सभ ऊपर दिस तकलक आ कन्याकेँ देखिते ओकरा चीन्हि गेल। ओ सभ बहिनकेँ खतरासँ बचा लेलक आ घर ल’ गेल। ओ सभ ततेक खिसिया गेल छल जे अपन घरवाली सभकेँ तेज कुलहाड़िसँ कुट्टी-कुट्टी काटि मारि देलक। तकर बादसँ ओ सभ अपन बहिनिक संग आनंदसँ रह’ लागल।

1 टिप्पणी:

मुकुन्द बिहारी ने कहा…

बड नीक शुरूआत केने छी... उम्मीद करब की आगां सेहो अहां मैथिली में ऐनाही लिखैत रहब
धन्यबाद