शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

हास विद्या: चोर आ सोना के खेती

मिथिलामे काँची नामक एकटा राजधानी छल। ओतए कहियो सुप्रतापी नामक एकटा राजा भेल छेलाह। एक बेर कोनो धनिकक ओतए चोरी करैत चारि गोट चोर सेंध करैत ओसारा पर पकड़ि लेल गेल। चारो चोर के कोतवाल बांधि के राजा के सामने प्रस्तुत कएलक आ सभटा बात बतौलक। राजा अपन जल्लाद सभकेँ निर्देश देलनि जे चारो चोरकेँ नगर सँ बाहर ल’ जो आ शूली पर चढ़ा के मारि दे। राजा दंडनीति के हवाला दैत कहला जे विद्वानक कहब छैन जे सज्जन के सम्मान आ दुष्ट के नाश ही राजधर्म होइत छैक। राजा के आज्ञा पाबि जल्लाद एक-एक कए तीन टा जल्लाद के शूली पर चढ़ा देलक। आब चारिम के बारी छलै। चारिम चोर सोचलक जे आब मरब त’ निश्तुके अछि त’ किएक नै एक बेर जीवन बचाबए के अंतिम उपाय कएल जए। किएक त’ अगर ओ एहि मे असफल रहल तैयो मरनाइ त’ निश्चिते छैक। जखन जल्लाद ओकरा शूली पर चढ़ाबए लागल त ओ बपहारि तोरि कहए लागल - हे जल्लाद हमरा मरए सँ पहिने एकटा बात कहक अछि। हम एकटा बड पैघ विद्या जानैत छी आ चाहैत छी जी मरए सँ पहिने ई विद्या राजा के बता दियैक। अगर हम राजा के बिना बतौने मरैत छी त फेर ई विद्या सेहो मरि जायत। जल्लाद पुछलक - तों मरए सँ पहिने कोना बहाना त नै कए रहल छें? तों एहन कोन विद्या जानैत छें जाहि मे राजा के रूचि सेहो हेतन्हि। राजा के एकटा चोर की सिखा सखैत अछि। चोर बाजल - सुनु कोतवाल, अगर अहां हमर ई समाद राजा तक नै पहुंचायब त’ अहाँ राजद्रोही के भागी बनब किएक त’ अहाँ राजाकेर हित के बात मे दखल द’ रहल छी। जखन राजा के हमर विद्या के बारे मे पता चलतन्हि त ओ खुश भए अहूं के इनाम देताह। जल्लाद सभके विश्वास भ’ गेलै जे सचमुच राजहित के कोनो बात हेतै। ओकरा मे सँ एकटा चोरक इच्छा राजा के बताबए विदा भए गेल। राजा सुनि सेहो जिज्ञासु भ’ उठलाह। राजा चारिम चोर के दरबार मे बजाए पुछलाह जे तों एहन कोना विद्या जानैत छें जो दोसर किओ नै जनैत छैक आ एहि सँ हमर हित हैत। चोर राजा सँ पुछलक - महाराज, अहाँ के सोना केर खेती अबैत अछि। राजा चैंकैत पुछलाह - सोना के खेती? ई कोना होइत छैक। चोर बाजल - महाराज, सोना के सरसों जकां आकार के बीया बना यदि खेत में छीटल जाए त एक महीना बादे सरसों जकां सोना के पैदावार होइत छैक। अहां सद्यह देखब। राजा के चोर पर बिसबास नै भेलैन्ह आ पुछलाह - तों सच बजैत छें। चोर पूरा विश्वासक संग बाजल - महाराज हम फूसि बाजब त’ कतए जाएब। अगर हम फूसि बजैत हैब त’ एक माह बाद हमरो अंत निश्चिते अछि। आखिर दंड देबाक वा इनाम देबाक अंतिम अधिकार त’ अहिंक लग अछि। राजा के अनुमति पाबि चोर सोना के बीया बनौलक आ क्रीड़ा-सरोवर के कछैर पर एकांत मे खेत सेहो तैयार कए लेलक। फेर राजा सँ कहलक जे महाराज आब बीया आ खेत दूनू तैयार अछि खाली बीया बाग करए वाला एकटा आदमी चाही। राजा चोर सँ पुछलाह - बीया तों अपने सँ किएक नै छीटैत छें जे तोरा एकरा लेल आदमी चाहियौ। चोर बाजल - महाराज अगर हम सोना के बीया छीट सकैत छलहुं तो फेर चोरी किएक करितहुँ? चोर के सोना के बीया छीटक अधिकार नै छैक। एहि बीया के वएह आदमी छीटी सकैत अछि जे जीवन मे कहियो चोरी नै केने होमए। हम त’ चाहैत छी महाराज अपने सँ एहि पवित्र काज के करथि। राजा चिंता मे पड़ि बजलाह - हम भाट-चारण के देबाक लेल पिताजी के धन चुरा चुकल छी तें हम ई काज नै कए सकैत छी। कोनो बात नैं मंत्री लोकनि मे सँ केओ एहि काज के करताह। राजा के एहि गप्प सुनि मंत्री सब बाजि उठलाह - महाराज हम सब ठहरलहुं राजकर्मचारी, बिना इम्हर-ओम्हर केने हमर सभक काज कोना चलि सकैत अछि तें हमहूं सब एकरा योग्य नहिं छी। एहि पर चोर धर्माध्यक्ष के दिसि देखैत बाजल - कोना बात नै, राजा के धर्माधिकारीये एकरा छिटी देथीन्ह। एहि पर धर्माध्यक्ष बजलाह - जखन हम नैन टा रही त’ मय सँ चोरा-चोरा के लड्डू खा लैत रही तें हमहूं एकर लायक नै छी। राजा के सभा मे चोरक शर्तक मुताबिक एकोटा आदमी बीया छीटबा लेल तैयार नै भेलाह। एहि पर चोर राजा के सामने हाथ जोड़ि ठाढ़ भए गेल आ बाजल - महाराज जखन अहां सभ केओ चोरी केने छी त’ फेर हम एसकरे किएक मारल जाई। चोरक बात सुनि सबटा सभासद हँसए लगलाह। राजा सेहो तमसए के बदला हँसए लगलाह। राजा चोर के माफ कए देलाह आ मनोरंजन करबाक लेल अपने दरबार मे नौकरी पर राखि लेलाह। तें कहल गेल अछि े चोर सँ अधम किओ नै होइत अछि तैयो हास विद्या सँ ओ मृत्युक मुँहसँ निकलि राजा के सबसँ स्नेही बनबा मे सफल रहल।
साभार: विद्यापति कृत पुरुष परीक्षा, लेखक: अखिलेश झा, प्रकाशक: प्रकाशन विभाग, भारत सरकार

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